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गले में खून बांध मोहब्बत का इजहार करती थीं एंजेलिना, फिर बिली बॉब से क्यों लिया था तलाक?

Angelina Jolie Unknown Facts: हॉलीवुड की हसीनाओं का जिक्र हो और एंजेलिना जोली का नाम न लिया जाए, ऐसा होना तो नामुमकिन ही है. दरअसल, जितनी चर्चा एंजेलिना की खूबसूरती को लेकर होती है, उनकी लव लाइफ उससे ज्यादा सुर्खियों में रही. बता दें कि आज ही के दिन यानी साल 2003 में 27 मई को एंजेलिना जोली और बिली बॉब थार्नटन का तलाक हुआ था. हालांकि, इससे पहले अपने इश्क के अंदाज-ए-बयां को लेकर यह कपल खबरों में बना रहता था. आइए आपको इस जोड़े की मोहब्बत परवान चढ़ने से लेकर तलाक की दहलीज पर पहुंचने की पूरी कहानी से रूबरू कराते हैं…

इस दिन हुई थी एंजेलिना-बिली की शादी

साल 2000 की पांच मई ही वह तारीख है, जब एंजेलिना अपनी जिंदगी की दूसरी मोहब्बत यानी बिली बॉब थार्नटन की हो गई थीं. दरअसल, इसी दिन यह कपल शादी के बंधन में बंधा था. फिर तो आलम यूं था कि हवाओं में भी इश्क था और उसकी खुशबू से पूरा जहां तरबतर था. दोनों सुबह-शाम एक-दूसरे के प्यार की कसमें खाते नजर आते थे. 

यूं बयां करते थे मोहब्बत

आलम यह था कि दोनों ने ऐसे लॉकेट बनवाए थे, जो देखने में शीशी की तरह थे. इन शीशी में दोनों ने एक-दूसरे का खून भरा था, जिसे वे अपने-अपने गले में बांधते थे. दरअसल, यह कुछ और नहीं, एक-दूसरे के प्रति मोहब्बत का इजहार करने का अलहदा तरीका था. 

इस दिन अलग हो गया था यह कपल

वह ऐसा दौर था, जब हर तरफ एंजेलिना और बिली बॉब के इश्क की चर्चा थी. हालांकि, ऐसा भी दौर आया, जब दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया. साल 2003 की तारीख 27 मई इस रिश्ते का अंत लेकर आई और दोनों एक-दूसरे से हमेशा-हमेशा के लिए अलग हो गए. एक-दूसरे के लिए जीने-मरने की कसमें खाने वाले इस जोड़े की जुदाई देखकर हर कोई हैरान रह गया. 

इस वजह से टूटा था रिश्ता

एंजेलिना ने इस रिश्ते के टूटने पर कहा था, ‘मुझे भी इस रिश्ते के टूटने की हैरानी हैं, कई बार ऐसा हो जाता हैं कि हम रातों रात पूरी तरह बदल जाते हैं.’ एंजेलिना के इस बयान से अनुमान लगाया गया कि बिली बॉब की जिंदगी में किसी और की एंट्री हो गई थी.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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