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‘मुझे लोगों को हंसाने से ज्यादा रुलाना पसंद है’, जानिए क्यों कार्तिक आर्यन ने कही ये बात

Kartik Aaryan On Satyaprem Ki Katha: कार्तिक आर्यन (Kartik Aaryan) इन दिनों अपनी फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ की सक्सेस एंजॉय करने के साथ अपकमिंग फिल्म ‘चंदू चैंपियन’ (Chandu Champion) की शूटिंग में भी बिजी चल रहे हैं. फिल्म के लुक से एक्टर की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं. जो फैंस को खूब पसंद आ रही है. हाल ही में एक्टर ने एक इंटरव्यू में अपनी फिल्म के किरदार को लेकर खुलकर बात की है. साथ ही ये भी कहा कि उन्हें दर्शकों को हंसाने से ज्यादा रुलाने में मजा आता है.

चंदू चैंपियनके लिए कार्तिक आर्यन ने बढ़ाया वजन

एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में कार्तिक ने ‘चंदू चैंपियन’ में अपने किरदार के बारे में बात करते हुए कहा कि, “ फिल्म में मेरे वजन में आपको काफी बदलाव देखने को मिलेगी. इसके लिए मैंने 2 महीने में अपना वजन बढ़ाया है. इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि, लंदन में उन्होंने तेज बुखार के बावजूद ठंडे पानी में शूटिंग की थी. शूटिंग से पहले उन्होंने बुखार की कई सारी गोलियां भी खाई थी.”  


मुझे हंसाने से ज्यादा रुलाना पसंद है – कार्तिक आर्यन

इसी इंटरव्यू में अपनी फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ की बात करते हुए  कार्तिक ने कहा कि, “मुझे किसी फिल्म में लोगों को हंसाने से ज्यादा रुलाना पसंद है. अगर आप आप ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ देखते हैं, तो फिल्म के पहले 30-40 मिनट शुद्ध नाटक हैं. जिसमें दोस्तों के बीच की प्योर भावनाएं हैं. जो आपको दोस्ती के लिए रुलाते हैं, लेकिन ये वो मुख्य रूप से है एक कॉमेडी फिल्म, इसलिए आप इसकी कॉमेडी पर ही ध्यान देंगे. आप फिल्म की भावनाओं या ड्रामा पर उतना ध्यान नहीं देते जितना कॉमेडी पर. चाहे वह ‘लुका छुपी’ जैसी हो, जिसमें इमोशनल सीन्स पर भी कॉमेडी हावी हो गई थी, लेकिन ‘सत्य प्रेम की कथा’ के साथ ऐसा नहीं हुआ.”

बता दें कि ‘चंदू चैंपियन’ के अलावा कार्तिक की पाइपलाइन में ‘आशिकी 3’ और ‘भूल भुलैया 3’ सहित कई दिलचस्प प्रोजेक्ट हैं, जिनकी घोषणा होनी अभी बाकी है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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