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मस्जिद जल गई, तो यहूदियों ने मुसलमानों को दी अपने प्रार्थनास्थल की चाभी


विक्टोरिया  दुनिया में धर्म के नाम पर भले ही कितनी भी ‘तू-तू, मैं-मैं’ और हिंसा हो जाए, लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसी खबरें भी आती हैं जो भाईचारे और इंसानियत में यकीन रखने वालों को तसल्ली देती हैं। अमेरिका स्थित टेक्सास प्रांत की एक मस्जिद ‘विक्टोरिया इस्लामिक सेंटर’ शनिवार सुबह आग लगने से बर्बाद हो गई थी। यहां रहने वाली यहूदी आबादी ने मुस्लिम समुदाय को अपने प्रार्थनास्थल की चाभियां दी हैं, ताकि मुसलमान वहां अपनी इबादत-पूजा कर सकें। जिस मस्जिद में आग लगी, वह शहर की इकलौती मस्जिद थी। इसके जल जाने के बाद मुस्लिम आबादी के पास इबादत की कोई जगह फिलहाल नहीं है। इस्लाम में साथ मिलकर नमाज पढ़ने का काफी महत्व है। इसी को देखते हुए शहर के यहूदियों ने यह फैसला लिया।

साल 2000 में बनकर तैयार हुई यह मस्जिद आग लगने के कारण बेहद बुरी हालत में है और इस मामले की जांच जारी है। अब इस मस्जिद का फिर से निर्माण कराया जा रहा है। जबतक यह काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक मुस्लिमों के पास सामुदायिक तौर पर मिलकर नमाज पढ़ने के लिए कोई जगह नहीं होगी। ऐसे हालात में उनकी मदद के लिए उनके यहूदी पड़ोसी सामने आए। यहूदी धार्मिक संगठन (टेंपल ब्नाइ इजरायल) के अध्यक्ष रॉबट लोब ने बताया, ‘यहां शहर में हर कोई एक-दूसरे को जानता है। मैं मस्जिद के कई सदस्यों को जानता हूं और हमने उनकी परेशानी को महसूस किया। जब इस तरह का कोई हादसा होता है, तब हम सब मिलकर एक-दूसरे के साथ खड़े होते हैं।’

रॉबट ने बताया, ‘विक्टोरिया में 25 से 30 यहूदी रहते हैं। मुस्लिमों की आबादी 100 के करीब है। यहूदियों की इतनी कम आबादी के मुकाबले हमारे पास बहुत सारी इमारतें हैं।’ विक्टोरिया इस्लामिक सेंटर मस्जिद की नींव रखने वालों में शामिल शाहिद हाशमी ने कहा, ‘यहूदी समुदाय के लोग मेरे घर में आए और उन्होंने अपने प्रार्थनास्थल की चाभी मुझे दे दी।’ मालूम हो कि यहूदी और मुसलमान पारंपरिक तौर पर एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं।

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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