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नसीरुद्दीन शाह ने दिया ‘आरआरआर’ और ‘पुष्पा’ का रिव्यू, कहा- ‘ऐसी फिल्में देखने कभी नहीं जाऊंगा’

Naseeruddin Shah reviewed RRR: नसीरुद्दीन शाह अक्सर अपने किसी न किसी बयान को लेकर चर्चा में आ जाते हैं. वे फिल्मों को लेकर अपनी राय शेयर करते रहते हैं. हाल ही में उन्होंने बताया कि उन्होंने ‘आरआरआर’ और ‘पुष्पा’ देखने की कोशिश की थी लेकिन वे नहीं देख पाए. हालांकि उन्होंने मणिरत्नम को सराहा और बताया कि उनहोंने उनकी फिल्म देखी है. इससे पहले नसीरुद्दीन ने गदर 2 को लेकर भी अपनी राय दी थी.

वी आर युवा को दिए एक इंटरव्यू में नसीरुद्दीन शाह ने कहा, ‘रामप्रसाद की तेरहवीं और गुलमोहर जैसी छोटी फिल्मों को उनकी जगह मिलेगी, मुझे पूरा यकीन है क्योंकि मुझे यंग जेनेरेशन पर बहुत भरोसा है. वे बहुत ज्यादा डेवेलप्ड हैं और उन्हें बहुत नॉलेज हैं. थ्रिल के अलावा मैं इमैजिन नहीं कर सकता कि आपको और क्या मिलेगा.’

नसीरुद्दीन ने की मणिरत्नम की तारीफ
नसीरुद्दीन शाह ने आगे खुलासा किया उन्होंने ‘आरआरआर’ देखने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं देख सके. इसके अलावा उन्होंने ‘पुष्पा’ भी देखने की कोशिश की, लेकिन नहीं देख पाए. एक्टर ने कहा कि मैंने मणिरत्नम की फिल्म देखी, क्योंकि वह बहुत अच्छे फिल्म मेकर हैं और उनका कोई एजेंडा नहीं है. इसके अलावा नसीरुद्दीन ने कहा कि वे थ्रिल या आपके अंदर छिपे इमोशन्स को बढ़ावा देने के अलावा कुछ और नहीं सोच सकते. 

उन्होंने कहा, इन्हें देखने के बाद अक्सर एक खुशी का एहसास होता है जो कई दिनों तक बना रहता है. मैं सोच नहीं कर सकता, मैं ऐसी फिल्में देखने कभी नहीं जाऊंगा.

कश्मीर फाइल्स को लेकर कही थी ये बात
बता दें कि इससे पहले फ्री प्रेस जर्नल से बात करते हुए नसीरुद्दीन शाह ने विवेक अग्निहोत्री की कश्मीर फाइल्स को लेकर कहा था कि इस तरह की फिल्मों को इतना पसंद किया जाना परेशानी की बात है. उन्होंने कहा था कि उन्होंने ‘द केरला स्टोरी’ और ‘गदर 2’ जैसी फिल्में नहीं देखी हैं. लेकिन उन्हें पता है कि वे किस बारे में हैं. यह परेशान करने वाली बात है कि ‘कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्में इतनी लोकप्रिय हैं. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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