चुनाव में पराजित नेताओं को EVM मशीन में दोष ढूँढने की जगह खुद अपनी कमी देखनी होगी

मौहम्मद इक़बाल राजा(मण्डल प्रभारी मुरादाबाद SBT):चुनाव परिणाम और EVM मशीन पर विशेष- साथियों, चुनाव में जिस राजनेता या दल की हार हो जाती है उसे अपने कर्म व करनी याद नहीं आती है बल्कि उसे चुनाव में बेइमानी याद आने लगती है।वह जनादेश पर अंगुली उठाकर अपने को जनप्रिय साबित करने में जुट जाता है। राजनेता कभी अपने को हार का जिम्मेदार नहीं मानता है और बिना सोचे समझे आरोप लगाना शुरू कर देता है।इस बार के सम्पन्न चुनाव में जनता द्वारा दिये गये अभूतपूर्व अकल्पनीय जनादेश को लेकर तरह तरह की बातें करके चुनाव आयोग की ईमानदारी पर अंगुली उठने लगी है।इस चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती जी का सूपड़ा साफ हो गया और उनकी सोशल इन्जीनियरिग फेल हो गयी। उन्हें अपनी चुनावी कार्यशैली मे दोष नहीं नजर आ रहा है बल्कि अब उन्हें ईबीएम मशीन में घपला नजर आने लगा है। उनका तर्क भी बौखलाहट का प्रतीक लग रहा है और उनका कहना है कि जहाँ पर मुस्लिम मतदाता अधिक हैं वहाँ पर भाजपा कैसे जीत गयी? लगता है कि मुस्लिम मतों का उन्होंने ठेका ले रखा है जो उनके अलावा किसी को वोट नहीं देंगे। बहन जी भूल रही है कि भाजपा का मुस्लिम प्रेम नया नहीं बल्कि पुराना है और उसके साथ भी आज से नहीं बल्कि अटल बिहारी बाजपेई के जमाने से मुस्लिमो का एक वर्ग समर्थक रहा है और मुसलमान आज भी उनके जमाने के कई कार्यों की तारीफ और याद दोनों आज भी करता है। वह भूल रही हैं कि जब जनता अगडाई लेती है तो सारे मानक अपने आप ध्वस्त हो जाते हैं और एक नयी इबारत लिख देते हैं। सपा बसपा के कथित मुस्लिम प्रेम और उनकी कार्यशैली ने उन्हें आज यह दिन दिखाये हैं। उन्हें जनादेश को सिरमाथे पर लेकर आत्म मंथन करने की जरूरत है। वैसे भी लोकतंत्र में सरकार का बदलना अनिवार्य माना जाता है और समाजवाद के जनक डा राममनोहर लोहिया ने भी कहा था कि जिस तरह से तवे की रोटी को न पलटने से वह खाने योग्य नहीं रह जाती है उसी तरह से लोकतंत्र में बदलाव न होने से तानाशाही का जन्म हो जाता है जो लोकतंत्र के लिये घातक होती है। प्रदेश में जिस तरह जाति पात धर्म सम्प्रदाय की राजनीति शुरू हुयी थी उसका अंत होना लोकतंत्र के लिये अति आवश्यक था क्योंकि इससे समाजिक समरसता एकता भाईचारा समाप्त होने की कगार पर पहुँच गया है। राजनीति के चलते प्रदेश में आतंकवादियों के पैर फैलने लगे हैं और उसका खामियाजा बेगुनाह जनता को भुगतना पड़ रहा है। चुनाव में पराजित नेताओं को ईबीएम मशीन में दोष ढूँढने की जगह खुद अपनी कमी देखकर उसे ठीक करना चाहिए।
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