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कोई 6 लाख की इडली कैसे खा सकता है! Swiggy की यह रिपोर्ट आपको कर सकती है हैरान

Swiggy : फेमस फूड ऑर्डर और डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी ने हाल ही में विश्व इडली दिवस के लिए अपनी दिलचस्प रिपोर्ट जारी की है. डिलीवरी प्लेटफॉर्म ने भारत में इडली की लोकप्रियता को एनालिसिस कर जब आंकड़े पेश किए तो ये चौंकाने वाले थे. पेश की गई रिपोर्ट से पता चला कि भारत के लोगों ने पिछले एक साल में स्विगी पर लगभग 33 मिलियन प्लेट इडली का ऑर्डर दिया है. अब जरा सोचिए यहां बात सिर्फ स्विगी की है, अगर इसमें जोमैटो भी मिला दिया जाए तो आंकड़े कहां पहुंच जायेंगे. हालांकि, हमारे पास फिलहाल जोमैटो के आंकड़े नहीं हैं. 

शख्स ने ऑर्डर की 6 लाख की इडली

स्विगी की रिपोर्ट तब और ज्यादा हैरान कर देती है, जब यह बताती है कि हैदराबाद के एक इडली प्रेमी को भारतीय नमकीन राइस केक इतना पसंद है कि उसने पिछले 12 महीनों में स्विगी से इडली ऑर्डर पर 6 लाख से अधिक खर्च कर दिए हैं. ये बात वाकई चौंकाने वाली है. रिपोर्ट में आगे बताया गया कि स्विगी ने पिछले 12 महीनों में इडली की 33 मिलियन प्लेटें बैंगलोर, हैदराबाद और चेन्नई टॉप तीन शहर में डिलीवर की हैं. यहां से सबसे ज्यादा इडली के ऑर्डर रिसीव हुए हैं. इसके अलावा, मुंबई, कोयंबटूर, पुणे, विजाग, दिल्ली, कोलकाता और कोच्चि से भी खूब ऑर्डर मिले हैं. 

इडली के लिए इस शख्स सा असीम प्यार

इडली बेशक कई लोगों की फैवरिट डिश होगी, लेकिन  हैदराबाद का एक शख्स इडली के लिए अपने प्यार को अगले नेक्स्ट लेवल पर ले गया है. शख्स ने प्लेटफॉर्म पर इडली के लिए सबसे ज्यादा ऑर्डर दिए हैं. व्यक्ति ने एक साल में सिर्फ इडली के लिए 6 लाख से ज्यादा रुपये खर्च कर दिए हैं. इतना ही नहीं, बात तो तब और हैरान कर देगी जब आप जानेंगे कि शख्स ने अलग-अलग जगहों से इडली के लिए ऑर्डर दिए, उन्होंने अगर कहीं यात्रा भी की है तो वहां भी इडली को ही ऑर्डर किया है. शख्स ने 8,428 प्लेट इडली का ऑर्डर दिया है, जिसमें बंगलौर और चेन्नई जैसे शहरों में यात्रा करते समय दोस्तों और परिवार दोनों के लिए दिए गए ऑर्डर शामिल हैं. 
 
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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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