बॉलीवुड और मनोरंजन

रंग की वजह से कई बार झेला रिजेक्शन, फिर झांसी की रानी बन घर-घर में छाईं उल्का

Ulka Gupta Unknown Facts: ‘बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…’ इन पंक्तियों ने न केवल झांसी की धरती पर राज करने वाली उस महारानी रानी को अमर कर दिया, बल्कि इस कविता को रचकर सुभद्रा कुमारी चौहान भी अमर हो गईं. इनके अलावा एक और शख्सियत है, जो छोटे पर्दे पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाली रानी का किरदार निभाकर हर किसी की जुबान पर छा गईं. सांवली सलोनी यह लड़की और कोई नहीं, बल्कि उल्का गुप्ता हैं. ‘झांसी की रानी’ बनकर घर-घर में छाने वाली उल्का गुप्ता की असल जिंदगी की कहानी रानी की तरह ही संघर्षों से भरी रही है. आज अभिनेत्री के जन्मदिन के मौके पर हम आपको वही बताने जा रहे हैं..

छोटी सी उम्र में डेब्यू

‘झांसी की रानी’ का किरदार निभाकर लोगों के दिलों में जगह बनाने वाली उल्का गुप्ता का जन्म 12 अप्रैल 1997 में मायानगरी मुंबई में हुआ था. मुंबई की चकाचौंध में उल्का गुप्ता का जन्म सिनेमा से ताल्लुक रखने वाले परिवार में हुआ था. अभिनेत्री के पिता गगन गुप्ता एक्टर हैं, जो कई फिल्मों और टीवी सीरियल्स में साइड किरदार निभाते देखे गए. बेशक उल्का का जन्म मुंबई में हुआ, लेकिन वह और उनका परिवार मूलरूप से बिहार के सहरसा से ताल्लुक रखता है. पढ़ाई के साथ-साथ उल्का ने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए सिनेमा की रंगीन दुनिया का सफर शुरू कर दिया था. 

बचपन में झेला रंगभेद

अभिनय की दुनिया में अपने नाम का परचम बुलंद करने की सोच रखने वाली उल्का गुप्ता ने टीवी की दुनिया में महज सात साल की उम्र में कदम रख दिया था. उल्का ने अपने करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट सीरियल ‘रेशम डंक’ से की थी. इस सीरियल में काम करने के बाद जब भी उल्का गुप्ता ऑडिशन देने जातीं, उनके हाथ सिर्फ और सिर्फ निराशा ही लगा करती थी. इंडस्ट्री में आज भी फैले रंगभेद की काली सच्चाई उल्का को परेशान करने लगी थी. न जाने उन्हें अपने सांवले रंग के कारण कितने किरदार से हाथ धोना पड़ा. फिर अभिनेत्री को स्किप्ट की मांग के चलते एक ऑफर मिला, जिसमें उन्हें सांवली लड़की का ही किरदार निभाना था. हम बात कर रहे हैं उल्का के दूसरे सीरियल ‘सात फेरे’ की. शो में उन्हें सलोनी की बेटी का किरदार निभाना था, जिसमें उन्हें कामयाबी मिली. 

‘मनु’ बन दिखाया कौशल

इतने दर्द और बार-बार रिजेक्शन झेलने के बाद उल्का गुप्ता के हाथ वह शो लगा, जिसने उनकी किस्मत को ऐसी पलट दी कि सब देखते रह गए. साल 2009 में उल्का गुप्ता के हाथ ऐतिहासिक सीरियल ‘झांसी की रानी’ लगा था, जिसमें उन्होंने मनु के किरदार को पर्दे पर जीवंत कर दिखाया. जब-जब पर्दे पर मनु आतीं तो ऐसा लगता था, मानों जिस साहस के साथ उल्का ने जिंदगी में संघर्ष किया, वह पर्दे पर उसी को उतार रही हैं. फिर क्या था अपने इस किरदार के बाद उल्का इंडस्ट्री का जाना पहचाना चेहरा बन गईं और उन्होंने साउथ फिल्मों में अपनी एंट्री की कवायद शुरू कर दी. 

साउथ, बॉलीवुड और ओटीटी…

लगातार दिए गए ऑडिशंस और पुरजोर कोशिश के बाद साल 2015 में उल्का गुप्ता के हाथ तेलुगू फिल्म ‘आंध्रा पोरी’ लगी, जो दक्षिण भारतीय फिल्मों में उनके डेब्यू की तरह चिह्नित की जाती है. इसके बाद साल 2016 में अनुष्का शेट्टी की फिल्म ‘रुद्रमादेवी’ में उन्हें अभिनेत्री के बचपन का किरदार निभाते देखा गया. साउथ में दर्शकों का दिल जीतने के बाद उल्का गुप्ता ने हिंदी सिनेमा का रुख किया और फिल्म ‘ट्रैफिक’ से बॉलीवुड में करियर की शुरुआत की. इसके बाद ‘मिस्टर कबड्डी’ और फिर रणवीर सिंह स्टारर फिल्म ‘सिम्बा’ में उल्का गुप्ता ने अपने अभिनय का जौहर दिखाया. फिल्मों में दौड़ लगाने का मतलब यह कभी नहीं था कि उल्का ने टीवी की दुनिया में चलना छोड़ दिया था. वह दोनों में बराबर काम करते हुए अपने करियर को आगे बढ़ा रही हैं. वह टीवी पर कभी ‘बन्नी चाऊ होम डिलिवरी’ में बन्नी बन दर्शकों को लुभाती हैं, तो कभी ओटीटी पर अपना कमाल दिखाती हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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