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क्या कम स्पीड में पंखा चलने पर कम खर्च होती है बिजली और ज्यादा स्पीड में चलने पर ज्यादा खर्च होगी? यहां देखें इसका जवाब – Electricity Bill Does running fan in low speed consume less electricity and will it cost more if running in high speed


Electricity Bill: गर्मियों का मौसम शुरू हो गया है। अब लोग पंखा, कूलर और एसी (AC) इस्तेमाल करने लगेंगे। वैसे ये भी जरूरी नहीं है कि सभी लोग कूलर और एसी (AC) का इस्तेमाल करें। पर पंखे का इस्तेमाल सभी लोग करते हैं और गर्मियों में तो दिनभर पंखा चलता है। अब जब पंखा दिनभर चलता है तो बिजली का बिल भी बढ़कर आता है। वैसे आपने अक्सर लोगों से सुना होगा कि पंखे की स्पीड से बिजली का बिल कम या ज्यादा आ सकता है।

Electricity Bill: क्या स्पीड से बिजली के खर्चे पर पड़ता है असर?

अक्सर लोगों कहते हुए सुना होगा कि पंखे की स्पीड 1 पर होगी तो बिजली कम खर्चा होती है और इससे बिजली का बिल कम आएगा। पर अगर पंखा फुल स्पीड में चले तो बिजली ज्यादा खर्च होती है, जिससे बिजली का बिल ज्यादा आता है। चलिए आज हम आपका यहां ये भ्रम दूर कर देते हैं।

आपको बता दें कि पंखा जितनी ज्यादा स्पीड में चलेगा, उतनी ही बिजली खर्च होगी। वैसे पंखे की स्पीड रेगुलेटर पर निर्भर होती है। जिस तरह से रेगुलेटर से स्पीड रखी जाती है पंखा उसी हिसाब से चलता है और बिजली भी इसी हिसाब से खर्चा होती है।

वैसे मार्केट में ऐसे रेगुलेटर उपलब्ध हैं, जिनका बिजली के खर्च होने से कोई संबंध नहीं होता है और ये पंखे की स्पीड को भी कंट्रोल करते हैं।

देखा जाए तो पंखें में लगे रेगुलेटर पर निर्भर होगा कि पंखे की स्पीड से बिजली की बचत होगी की नहीं। हालांकि बाजार में ऐसे कई रेगुलेटर उपलब्ध हैं, जो पावर यानी वोल्टेज को कंट्रोल करते हैं।

इसके साथ ही पंखे की स्पीड को कंट्रोल करते हैं। यही नहीं ये रेगुलेटर बिजली के खर्चे यानी खपत को कम कर सकते हैं। पर ऐसा जरूरी नहीं है कि इससे बिजली की बचत हो। बता दें कि पंखे की स्पीड कम या ज्यादा करने से बिजली की बचत पर कोई खास असर नहीं होता है।

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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