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जया प्रदा की ट्रैजिक लव स्टोरी, मोहब्बत के लिए की शादीशुदा शख्स से शादी, फिर तोड़ लिया रिश्ता

Jaya Prada Unknown Facts: बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री जया प्रदा भले ही राजनीति में कदम रख चुकी हैं, लेकिन एक जमाना ऐसा भी रहा, जब उन्होंने अपनी निजी जिंदगी की वजह से सुर्खियां बटोरीं. दरअसल, जया की जिंदगी में मोहब्बत की ऐसी ‘सरगम’ छिड़ी थी कि उन्होंने खुद को तीन बच्चों के पिता का ‘तोहफा’ दे दिया और अपनी मांग में उनके नाम का ‘सिंदूर’ सजा लिया. हालांकि, ‘औलाद’ के सुख की कमी ने उनके इस रिश्ते का ‘आखिरी रास्ता’ तय कर दिया.

13 साल की उम्र में शुरू हुआ करियर

3 अप्रैल 1962 के दिन आंध्र प्रदेश में जन्मी जया प्रदा का असली नाम ललिता रानी था. जब उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा, तब अपना नाम बदलकर जया प्रदा कर लिया. बता दें कि जया ने महज 13 साल की उम्र में ही सिनेमा जगत में कदम रख दिया था. वह प्रोफेशनल जिंदगी में  भले ही सुपरहिट रहीं, लेकिन निजी जिंदगी में उन्होंने तमाम दिक्कतों का सामना किया.

बॉलीवुड ने दिलाई असली पहचान

बता दें कि जया प्रदा ने अपने करियर में 200 से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाया. वह उन दिग्गज अभिनेत्रियों में से एक हैं, जिन्होंने 70 और 80 के दशक के बेहतरीन अभिनेताओं के साथ स्क्रीन शेयर की. बता दें कि जया के करियर की शुरुआत तेलुगू फिल्मों से हुई थी, लेकिन उन्हें पहचान बॉलीवुड से ही मिली.

तीन बच्चों के पिता को बनाया जीवनसाथी

जब जया अपने करियर के पीक पर थीं, तब उनका नाम फिल्म निर्माता श्रीकांत नहाटा के साथ जुड़ा. हालांकि, दोनों हमेशा इस रिश्ते को दोस्ती का नाम देते रहे. साल 1986 में 22 जून के दिन उन्होंने श्रीकांत नहाटा से शादी कर ली. नहाटा उस वक्त शादीशुदा थे और उनके तीन बच्चे भी थे. ऐसे में जया प्रदा को दूसरी पत्नी का तमगा मिला.

इस वजह से टूट गया रिश्ता’

बता दें कि टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, जया प्रदा से शादी के बाद भी नहाटा ने अपनी पहली पत्नी का साथ नहीं छोड़ा. इसके अलावा उन्होंने जया को मां बनने का सुख भी नहीं दिया. इसके चलते दोनों के रिश्ते में कड़वाहट आने लगी और धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए. इसके बाद जया ने अपनी बहन के बच्चे को गोद ले लिया और अब उसके साथ रहती हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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