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मंडे टेस्ट में बुरी तरह फेल हुई अजय देवगन की फिल्म

Maidaan Box Office Collection Day 5: अजय देवगन की फिल्मों का फैंस को बेसब्री से इंतजार रहता है. जैसे ही वो अपनी फिल्म की अनाउंसमेंट करते हैं वैसे ही लोगों में उसे लेकर क्रेज बढ़ जाता है. ऐसा ही कुछ उनकी फिल्म मैदान को लेकर हुआ था. मैदान को लेकर लोगों में खूब एक्साइटमेंट थी लेकिन जब ये फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हुई तो कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई. फिल्म को अपनी लागत निकालने में भी मुश्किल हो रही है. पांच दिनों में ही मैदान का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल हो गया है. फिल्म को 25 करोड़ का आंकड़ा पार करने में भी इतना समय लग गया है. मैदान का पांचवें दिन का कलेक्शन सामने आ गया है. जिसे देखकर कहा जा सकता है कि फिल्म मंडे टेस्ट में फेल हो गई है.

मैदान एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है. जिसमें अजय देवगन के साथ प्रियामणि लीड रोल में नजर आईं हैं. अजय ने फिल्म में इंडियन फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम का किरदार निभाया है. फिल्म को बोनी कपूर ने प्रोड्यूस किया है. मैदान को क्रिटिक्स के अच्छे रिव्यू मिले हैं लेकिन ऑडियन्स को ये फिल्म इंप्रेस नहीं कर पाई है.

पांचवें दिन किया इतना कलेक्शन
सैकनिल्क की रिपोर्ट के मुताबिक मैदान ने पांचवें दिन सिर्फ 1.5 करोड़ का कलेक्शन किया है. ये आंकड़ां अजय देवगन की फिल्म के हिसाब से काफी बुरा है.

अजय देवगन की मैदान 10 अप्रैल को शाम को रिलीज हो गई थी. उसके बाद पूरे तरीके से इसे 11 अप्रैल को रिलीज किया गया था. फिल्म ने 10-11 अप्रैल को मिलाकर 7.1 करोड़ का कलेक्शन किया था. दूसरे दिन 2.75 करोड़, तीसरे दिन 5.75 करोड़ और चौथे दिन 6.4 करोड़ का कलेक्शन किया था. जिसके बाद टोटल कलेक्शन 23.50 करोड़ हो गया है.

मैदान को राम नवमी की छुट्टी का कुछ फायदा हो सकता है. जिसके बाद फिल्म 25 करोड़ के क्लब में शामिल हो जाएगी. हालांकि अब फैंस को इस फिल्म से ज्यादा उम्मीद है नहीं. लंबे समय तक ये बॉक्स ऑफिस पर नहीं टिक पाएगी.

बता दें कुछ समय पहले अजय देवगन की शैतान रिलीज हुई थी. इस फिल्म ने मैदान से बहुत शानदार कलेक्शन किया था. अब भी लोग इस फिल्म को पसंद कर रहे हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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