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समस्या बोलिए और फट से मिलेगा जवाब, किसानो के लिए ये वरदान से कम नहीं, जानिए कैसे यूज करना है

What Is Kissan GPT: चैट जीपीटी के आने के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर खूब रिसर्च की जा रही है. कई कंपनियां चैट जीपीटी को देखकर अपने AI टूल लॉन्च कर चुकी हैं. कुछ समय पहले गीता जीपीटी (GeetaGPT) नाम का एक टूल सामने आया था जिसमें भगवत गीता के आधार पर लोगों को सवालों का जवाब मिलता है. अब एक और ऐसा ही चैटबॉट सामने आया है जिसे किसान जीपीटी (Kissan GPT) नाम दिया गया है जो किसानों की तनख्वाह/आमदनी को दोगुना करने में मदद करेगा. 

क्या है किसान जीपीटी?

किसान जीपीटी एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड चैटबॉट है जो चैट जीपीटी 3.5 पर आधारित है. इस चैटबॉट से किसान खेती से जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान बोलकर प्राप्त कर सकते हैं. चैट जीपीटी को 15 मार्च को प्रतीक देसाई ने लॉन्च किया था. इस चैटबॉट को एक्सेस करने के लिए आपको पर जाना होगा. ये वेबसाइट बड़ी ही सरल है. वेबसाइट पर जाते ही आपको 14 भाषाएं मिलती हैं जिसमें से आपको एक भाषा को चुनना है और फिर आप उस भाषा में बोलकर चैटबॉट को अपनी परेशानी बता सकते हैं. परेशानी को सुनते ही चैटबॉट आपको सेकंड्स में उसका समाधान दे देगा. 

ध्यान दें, किसान जीपीटी में बग की परेशानी आ सकती है क्योकि इसपर अभी काम किया जा रहा है. कई बार ये आपको गलत जवाब या अधूरा जवाब भी दे सकता है. प्रतिक देसाई ने बताया कि इस चैटबॉट को और बेहतर करने के लिए GPT-4 को इसके साथ इंटीग्रेट किया जाएगा.  

किसानों के अलावा ये लोग भी कर सकते हैं इस्तेमाल

किसान जीपीटी को न सिर्फ किसानों के लिए बनाया गया है बल्कि कोई भी स्कूली बच्चा, रिसर्चर्स या अन्य कोई भी इसका इस्तेमाल कर सकता है. 31 मार्च को एक अपडेटेड ट्वीट में प्रतिक देसाई ने बताया कि जल्द किसान जीपीटी को गवर्नमेंट और एग्रीकल्चर इंस्टीटूशन के साथ जोड़ा जाएगा. साथ ही एक ऐप भी इसका तैयार किया जा रहा है ताकि लोग ऐप के माध्यम से इसे एक्सेस कर पाएं. 

हमने व्यक्तिगत तौर पर जब किसान जीपीटी से पूछा की हमारे खेत में बोए आलू सड़ गए हैं तो हम क्या करना चाहिए तो इसके जवाब में इस चैटबॉट ने क्या कहा वो पढ़िए. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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