लता मंगेशकर थीं क्रिकेट की जबरा फैन, इंडिया के मैच हारने पर हो जाता था ऐसा हाल
Lata Mangeshkar Birth Anniversary: देश आजाद होने के एक साल बाद एक फिल्म आई जिसने बॉलीवुड जगत को दो बड़े स्टार दिए, देव आनंद और लता मंगेशकर. देव आनंद इसके पहले भी कई फिल्में कर चुके थे, लेकिन इस फिल्म से उन्हें पहचान मिली. वहीं लता जी का दूसरा ही लेकिन बड़ा दिलचस्प किस्सा है.
उस किस्से के बारे में बात करेंगे, पहले बात कर लेते हैं साक्षात सरस्वती का अवतार मानी जाने वाली लता जी के क्रिकेट प्रेम की. किसी फिल्म का मशहूर डायलॉग है इंडिया में देशभक्ति देखनी है तो उसका बढ़िया नजारा आपको तीन मौकों पर मिलेगा. पहला 15 अगस्त, दूसरा 26 जनवरी और तीसरा तब जब इंडियन क्रिकेट टीम किसी मैदान पर उतरी हो.
ऐ मेरे वतन के लोगों से देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू ला देने वाली लता जी (इस बात का जिक्र लता जी की बायोग्राफी में भी है) फिर भला कैसे देशभक्ति के इन मौकों पर खुद को साबित न करतीं. खुद सम्राज्ञी होने के बावजूद वो आम इंसान की तरह ही सचिन तेंदुलकर की भी फैन रही हैं. ऐसा कई मौकों पर देखा भी गया है.
क्रिकेट की दीवानगी कुछ यूं थी लता जी में
क्रिकेट की दीवानगी का आलम क्या है देश में, इसके बारे में ज्यादा क्या ही बात करें. ये सबको पता है. उसी पागलपन की हद तक जाकर खड़ी हो जाने वाली दीवानगी लता जी में भी थी. इस बारे में उन पर किताब लिखने वाले यतीन्द्र मिश्रा ने अपनी किताब ‘लता : सुर-गाथा’ में बाकायदा बताया है.
उन्होंने बताया है कि भारत के क्रिकेट में हार जाने के बाद उनका मूड कितना ज्यादा खराब हो जाता था कि दोबारा उसे ठीक होने में एक लंबा समय लगता था. यतीन्द्र ने किताब लिखने के समय का एक वाकया याद करते हुए अपने ब्लॉग में लिखा था-
”अगर किसी दिन सचिन तेंदुलकर खेल रहे हैं और टीम हार गई, तो समझ लीजिए बातचीत का दौर हफ्तों तक विराम की ही अवस्था में रहने वाला है. ये सिर्फ क्रिकेट ही था जो मेरी किताब ‘लता : सुर-गाथा’ में रोड़े की तरह खड़ा हो जाता था.”
एसडी बर्मन के साथ-साथ महेंद्र सिंह धोनी भी होते थे बातों का हिस्सा
यतीन्द्र आगे स्वर कोकिला के मन में कोयल के दोबारा चहचहाने को भी याद करते हैं. वो बताते हैं कि जब इंडिया मैच जीत जाता था तो वो किस तरह खुशी में होती थीं. वो लिखते हैं-
”हर बार जब लता दीदी क्रिकेट के मोहपाश से निकलकर कई दिनों बाद बात करती थीं, तो उनकी आवाज में वो खुशी भी शामिल रहती थी कि कैसे पिछला मैच बड़े शानदार ढंग से इंडिया जीत गया है. और फिर एस. डी. बर्मन की बात के बीच में बड़े आराम से महेंद्र सिंह धोनी भी चले आते थे.”
अब वो दिलचस्प किस्सा जो ऊपर अधूरा रह गया था
दरअसल जब 1948 में ‘जिद्दी’ आई तो स्वर कोकिला का नाम फिल्म की डिस्क में नहीं गया. वजह थी कि तब सिंगर का नाम नहीं जाता था सो लता दीदी का भी नहीं गया. डिस्क में नाम लिखा गया ‘आशा’.
यहां ये गलतफहमी बिल्कुल न हो कि कहीं ये उनकी बहन आशा भोसले का नाम तो नहीं था, इसलिए बता दें कि असल में लीड एक्ट्रेस कामिनी कौशल के कैरेक्टर का नाम फिल्म में आशा था. सो म्यूजिक कंपनी ने वही नाम छाप दिया.
वो दौर ऐसा था कि एक्टर-एक्ट्रेस, डायरेक्टर के नाम तो जाते थे लेकिन सिंगर्स को क्रेडिट नहीं दिया जाता था. लेकिन संगीत जगत की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. जैसे कि विधाता ही न चाह रहा हो कि दुनिया के 8वें अजूबे जैसा टैलेंट कहीं खोकर रह जाए. इसलिए हुआ यूं कि वो गाना लोगों को इतना पसंद आया कि सिंगर के तौर पर एक्ट्रेस कामिनी की वाहवाही होने लगी.
हालांकि, कामिनी को ये बात ठीक नहीं लगी, क्योंकि वो नहीं चाहती थीं कि किसी का क्रेडिट खा जाएं. उन्होंने रिकॉर्डिंग कंपनी से गुजारिश की कि लता जी को क्रेडिट दिया जाए. कंपनी मान गई और लता जी को वो पहचान मिलनी शुरू हो गई जिसकी वो हकदार थीं. इस बारे में खुद कामिनी कौशल ने एक इंटरव्यू में जिक्र भी किया था.
शुरुआत में झेलना पड़ा था रिजेक्शन
लता मंगेशकर की जो आवाज बाद में पहचान बन गई. दरअसल वो अमिताभ बच्चन की ‘हाइट’ जैसी थी. जैसे अमिताभ बच्चन को उनकी हाइट की वजह से शुरुआत में फिल्मों में रिजेक्शन का सामना करना पड़ता था वैसे ही लता जी को उनकी पतली आवाज की वजह से भी रिजेक्शन का सामना करना पड़ा.
दिलीप कुमार की फिल्म ‘शहीद’ के निर्माता एस मुखर्जी ने फिल्म के लिए उनका ऑडिशन लेकर ये कहकर रिजेक्ट कर दिया था कि उनकी आवाज बेहद पतली है. हालांकि, बाद में लता जी की कड़ी मेहनत ने उन्हें वो मुकाम दिला दिया जो दुनियाभर के किसी सिंगर के लिए बिल्कुल वैसा ही है जैसे क्रिकेट जगत में सचिन के अनोखे रिकॉर्ड्स ब्रेक करना हो.
13 साल की उम्र से गा रही लता जी ने 80 साल के बेहद लंबे करियर में अलग-अलग 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गाने गाए. यही वजह रही कि उन्हें भारत रत्न, पद्म विभूषण जैसे श्रेष्ठ सम्मान तो मिले ही, साथ ही साथ ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी नाम दर्ज हुआ.
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