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Richard Roundtree Death : हॉलीवुड इंडस्ट्री से बुरी खबर सामने आई है। दरअसल, हॉलीवुड के एक्शन स्टार रिचर्ड राउंडट्री (Richard Roundtree) का निधन हो गया है। रिचर्ड रिचर्ड राउंडट्री ने 81 साल की उम्र में आखिरी सांस ली है। रिचर्ड राउंडट्री काफी समय से कैंसर जैसी बीमारी से जंग रहे थे। रिचर्ड राउंडट्री के निधन की जानकारी उनके मैनेजर ने दी है। रिचर्ड राउंडट्री के निधन से हॉलीवुड इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई। वहीं, रिचर्ड राउंडट्री के दुनिया भर में फैंस को दुख व्यक्त कर रहे हैं। गौरतलब है कि साल 1971 में रिलीज हुई हॉलीवुड फिल्म ‘शॉफ्ट’ में रिचर्ड राउंडट्री के प्राइवेट जासूस किरदार के लिए उनको जाना जाता है। फिल्म ‘शॉफ्ट’ में काम करने के बाद रिचर्ड राउंडट्री को काफी ज्यादा फेम मिला था।

रिचर्ड राउंडट्री को दो बार हुआ कैंसर

‘हॉलीवुड रिपोर्टर’ के मुताबिक, रिचर्ड राउंडट्री को साल 1993 में ब्रेस्ट कैंसर का होने के बारे में पता चला और उन्होंने इसका इलाज कराया। रिचर्ड राउंडट्री इस कैंसर से जंग जीत गए लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें पैंक्रियाज कैंसर हो गया और इस बार वह कैंसर से हार गए। रिचर्ड राउंडट्री का 81 साल की उम्र में उनके लॉस एंजेलिस स्थित घर पर निधन हो गया। रिचर्ड राउंडट्री के निधन की खबर सुनकर उनके फैंस को झटका लगा है। रिचर्ड राउंडट्री के फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

रिचर्ड राउंडट्री का फिल्मी करियर

रिचर्ड राउंडट्री ने हॉलीवुड इंडस्ट्री के करियर में काफी लंबे समय तक काम किया है। रिचर्ड राउंडट्री ने अपने करियर में एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं और लोगों का दिल जीता है। रिचर्ड राउंडट्री ने साल 1971 में रिलीज हुई फिल्म ‘शॉफ्ट’ में प्राइवेट जासूस का रोल किया था और इसके बाद इस फिल्म के लगभग सभी पार्ट में उन्होंने काम किया था। फिल्म ‘शॉफ्ट’ में काम करने के बाद रिचर्ड राउंडट्री काफी ज्यादा पॉपुलर हो गए थे। रिचर्ड राउंडट्री ने अपने करियर 150 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था और उनकी पाइपलाइन में कई फिल्में थीं। ये फिल्म रिलीज होतीं कि उससे पहले रिचर्ड राउंडट्री का निधन हो गया।

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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