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’72 हूरें के ट्रेलर पर ‘सेंसर’ का संकट, जानिए क्यों CBFC ने ट्रेलर को पास करने से किया मना

72 Hoorain Movie: धर्मांतरण, आतंकी साजिश और भोले-भाले लोगों के ब्रेनवॉश के बैकग्राउंड में बनी फिल्म ‘72 हूरें’ (72 Hoorain) पर सेंसर बोर्ड की तरफ से संकट पैदा हो गया है. इस फिल्म के ट्रेलर को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने पास करने से साफ इनकार कर दिया है.

CBFC के इस फैसले के बाद एक बार फिर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रैशन और फ्रीडम ऑफ स्पीच जैसे मुद्दों पर बहस शुरू हो गई है. अब फिल्म के मेकर्स CBFC के फैसले के खिलाफ सूचना और प्रसारण मंत्रालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं.

CBFC ने फिल्म के ट्रेलर को किया रिजेक्ट
गौरतलब है कि CBFC की ये जिम्मेदारी होती है कि वो दर्शकों के मद्देनज़र ये सुनिश्चित करें कि फ़िल्मों को‌ लेकर वो तय मानकों का पालन करेंगे. ऐसे में ये बेहद हैरान कर देने वाला फैसला है कि जिस CBFC ने फ़िल्म ’72 हूरें’ को रिलीज़ के लिए हरी झंडी दिखा दी है. अब उसी सीबीएफ़सी ने फ़िल्म के ट्रेलर को पास करने से साफ़ इनकार कर दिया है.

मामले को इस मंत्रालय तक ले जाएंगे मेकर्स 
वहीं फिल्म के ट्रेलर को रिजेक्ट करने के फैसले से ना सिर्फ मेकर्स बल्कि पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री को एक बड़ा झटका लगा है. फ़िल्म के मेकर्स का कहना है कि वो इस मसले को उच्च अधिकारियों के सामने लेकर जाएंगे. साथ ही इसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय तक भी पहुंचाएंगे और संबंधित अधिकारियों से अनुरोध करेंगे कि वो इस मामले में दखल देते हुए सीबीएफ़सी के आला अधिकारियों से सफ़ाई मांगे.

7 जून को फिल्म रिलीज करने का किया गया था ऐलान
’72 हूरें’ के ट्रेलर में आतंकवाद की काली दुनिया की झलक देख‌ने को मिलती है. बता दें कि दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके संजय पूरण सिंह चौहान द्वारा निर्देशित फ़िल्म ’72 हूरें’ का ट्रेलर डिजिटली रिलीज़ किया जाएगा, जबकि इस फ़िल्म को 7 जून को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज़ करने का ऐलान पहले ही कर दिया गया है. इस फ़िल्म का निर्माण गुलाब सिंह तंवर, किरण डागर और अनिरुद्ध दवे ने मिलकर किया है. जबकि अशोक पंडित इस फ़िल्म के सह-निर्माता हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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