उत्तर प्रदेश

सपा और कांग्रेस के गठबंधन पर बृहस्पतिवार को मुहर लग गई। इस गठबंधन से राष्ट्रीय लोकदल बाहर

यूपी विधानसभा चुनाव के लिए सपा और कांग्रेस के गठबंधन पर बृहस्पतिवार को मुहर लग गई। इस गठबंधन से राष्ट्रीय लोकदल बाहर हो गया है। सपा 300 सीटों पर जबकि कांग्रेस 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। तीन सीटें अन्य दलों के लिए छोड़ी गई है।
कांग्रेस से सीटों पर सहमति न बन पाने के कारण रालोद ने खुद को गठबंधन की बातचीत से अलग कर ‌लिया। सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा ने कहा कि हमारा कांग्रेस से गठबंधन होगा। रालोद से गठबंधन के लिए कोई बात नहीं हुई है।

20 सीटें दे रही थी कांग्रेस 30 से कम पर राजी नहीं हुआ रालोद
महागठबंधन के लिए सपा ने रालोद से बातचीत के ‌लिए कांग्रेस नेताओं को अधिकृत कर दिया था। रालोद ने कांग्रेस को 30 सीटों की सूची सौंपी थी। बाद में वह 30 सीटों पर लड़ने के लिए तैयार हो गया लेकिन कांग्रेस उसे 18-20 से ज्यादा सीटें देने के लिए राजी नहीं हुई।
सपा की 300 प्रत्याशियों की लिस्ट तैयार

समाजवादी पार्टी के 300 प्रत्याशियों की सूची तैयार हो गई है। चरणवार सूची बनाई गई है। कांग्रेस से गठबंधन में सभी सीटों पर सहमति बन जाने के बाद शनिवार को इसका एलान किए जाने की संभावना है।

सपा ने बागियों के साथ ही कुछ मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं। अमरोहा जिले की नौगावां सादात सीट से विधायक अशफाक अहमद का टिकट काटकर शिया मौलाना जावेद आब्दी को प्रत्याशी बनाया है।

सपा ने बृहस्पतिवार को पहले चरण के 21 प्रत्याशियों को सिम्बल तथा फॉर्म-ए व बी आवंटित कर दिए। सिम्बल पर राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के हस्ताक्षर हैं। पहले चरण के शेष प्रत्याशियों को शुक्रवार को सिम्बल लेने के लिए बुलाया गया है।

सपा ने गठबंधन में अपने पास 300 सीटें रखी हैं। शेष 103 सीटें कांग्रेस के भरोसे छोड़ दी हैं। वह इन सीटों पर खुद लड़े या सहयोगी दलों को दे। जिस समय ये सीटें छोड़ी गईं तब रालोद से गठबंधन की संभावना थी। रालोद से बातचीत टूटने के बाद कांग्रेस के पास सभी सीटें रहेंगी या नहीं, इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है।

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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