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Google के सीईओ सुंदर पिचाई ने याद किए पुराने दिन, अपने पिता को भेजे पहले ईमेल की बताई कहानी

Google CEO : गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने हाल ही में एक ब्लॉग लिखा है, जिसमें उन्होंने अपने 25 साल पुराने एक किस्से को शेयर किया है. ये किस्सा इतना भावुक है कि आप इसे जानकर तारीफ किए बिना नहीं रह सकेंगे.

दरअसल सितंबर 2023 को गूगल को पूरे 25 साल हो गए है. इस मौके पर गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई ने अपनी कुछ पुरानी यादों को ताजा करते हुए एक ब्लॉग लिखा है, जिसमें उनके पिता के साथ हुए वार्तालाप का जिक्र है. अगर आप भी इसके बारे में जानना चाहते हैं तो यहां इस किस्से के महत्वपूर्ण हिस्सों का जिक्र हम कर रहे हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में….

 
पिचाई ने कही ये बात

अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई ने बताया कि कैसे टेक्नोलॉजी ने बीते 25 साल में हमारे बात-चीत के तरीके को बदल दिया है. उन्होंने बताया कि कई साल पहले जब वह अमेरिका में पढ़ाई कर रहे थे, तो उनके पिता भारत में रहते थे, तब आपस में बातचीत करने के लिए सबसे सस्ता तरीका ईमेल था, जिसके जरिए, उन्होंने अपने पिता को एक ईमेल किया और उसका जवाब उन्हें दो दिनों के बाद मिला, जिसमें उनके पिता ने लिखा कि डियर पिचाई, इमेल मिला. सब ठीक है.

फिर पिचाई ने किया था फोन

ईमेल मिलने में देरी की वजह से पिचाई ने अपने पिता को फोन भी कर दिया था. जिस पर उनके पिता ने बताया कि उनके ऑफिस किसी को उनके कंप्यूटर पर ईमेल रिसीव करना होगा. फिर उसका प्रिंट आउट लेना होगा और फिर उन तक पहुंचाना होगा. मेरे पिता ने मुझे भेजने के लिए एक मैसेज लिखवाया. फिस मुझे भेजने के लिए उन्होंने टाइप करवाया.

काफी आगे बढ़ गई है टेक्नोलॉजी

पिचाई ने कहा कि आज के वक्त में टेक्नोलॉजी काफी आगे बढ़ गई है. उन्होंने कहा कि मैं एक बार अपने बेटे के साथ था. उसने कुछ देखा और अपने मोबाइल में उसकी फोटो ली. फिर उसे अपने दोस्तों को शेयर किया. फिर उन्होंने एक दूसरे को मैसेज भेजा. मुझे यह सब अपनी जेब से फोन निकालने से भी ज्यादा तेज लग रहा था. इतने सालों पहले मैंने अपने पिता के साथ जिस तरह से बातचीत की थी, उसके मुकाबले आज मेरा बेटा जिस तरह से बातचीत करता है, उससे पता चलता है कि पीढ़ियों के बीच कितना बदलाव आ सकता है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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