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रेखा से ब्रेकअप, शादीशुदा होते हुए स्मिता पाटिल संग लिवइन, ऐसी थी राज बब्बर की पर्सनल लाइफ

Raj Babbar-Rekha Affair: बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर रह चुके राज बब्बर (Raj Babbar) इन दिनों इंडस्ट्री से दूर राजनीति में अपनी किस्मत चमका रहे हैं. फिल्मी करियर के दौरान एक्टर सिर्फ अपनी फिल्मों के लिए ही नहीं बल्कि पर्सनल लाइफ को लेकर भी काफी सुर्खियों में रहे हैं. आज हम आपको उनकी जिंदगी के उस पहलू से रूबरू करवा रहे हैं. जो आपने शायद ही पहले कभी सुना होगा..

पत्नी से तलाक लेकर की थी स्मिता से शादी
राज बब्बर ने अपनी लंबे करियर में हिंदी सिनेमा को कई सुपरहिट और यादगार फिल्में दी हैं. उनकी जोड़ी को खूबसूरत एक्ट्रेस स्मिता पाटिल के साथ फैंस ने सबसे ज्यादा पसंद किया है. वहीं साथ में काम करते हुए राज बब्बर भी स्मिता की खूबसूरती पर फिदा हो गए और उन्हें दिल दे बैठे. लेकिन दोनों के प्यार में अड़चन बनी राज की पहली शादी. इसी के चलते काफी वक्त तक ये दोनों लिवइन में रहे फिर एक्टर ने अपनी पत्नी को तलाक देकर स्मिता पाटिल से शादी कर ली.

स्मिता की मौत के बाद सहारा बनीं रेखा
लेकिन दोनों के प्यार की दास्तां शादी के बाद भी पूरी नहीं हो पाई. खबरों के अनुसार स्मिता पाटिल ने अपने पहले बच्चे को जन्म देते वक्त दुनिया को अलविदा कह दिया. स्मिता की मौत से राज बब्बर पूरी तरह से बिखर चुके थे. ऐसे में उनकी लाइफ में एक्ट्रेस रेखा वो सहारा बनीं जिन्होंने राज को जीने की नई उम्मीद दी. रेखा संग अपने अफेयर पर राज बब्बर ने IBTimes से खुलकर बात की थी.

स्मिता की मौत से सदमे में थे राज बब्बर
एक्टर ने कहा था कि,  ‘हां इस रिश्ते ने मेरी काफी मदद की है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि उन दोनों का रिश्ता ज्यादा गहरा तो नहीं रहा लेकिन दोस्ती से ज्यादा ही रहा था.”  वहीं द टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में राज बब्बर ने स्मिता के बारे में बात करते हुए कहा था कि, ‘ उसकी मौत से मैं सदमे में था. लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपने काम में दिल लगाया. हालांकि मेरे जख्मों को भरने में काफी वक्त लग गया था. ‘

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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