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सतीश कौशिक को याद कर इमोशनल हुए शेखर कपूर, बताया कैसे हुई थी दोस्ती की शुरुआत

Shekhar Kapoor On Satish Kaushik: फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने शुक्रवार को अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर अभिनेता-फिल्म निर्माता सतीश कौशिक के लिए एक इमोशनल नोट लिखा, जिनका बुधवार को निधन हो गया. शेखर कपूर ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर कौशिक की एक तस्वीर पोस्ट की और एक लंबा इमोशनल नोट लिखा.

उन्होंने लिखा, “मुंबई में बाढ़ आ गई. मैं मुश्किल से अपनी फ्लाइट पकड़ने के लिए एयरपोर्ट पहुंचा. जब मैं चेक इन करने के लिए कतार में खड़ाम ना था तो एक युवक मेरे पास आया. पूरी तरह गीला था. मैंने उसे पहले देखा था. वो हमेशा मेरे ऑफिस के बाहर चेहरे पर एक मुस्कान लिए बाकियों के साथ खड़ा रहता था. मैं उन्हें वापस स्माइल दे देता था.”

उन्होंने आगे लिखा,”मैं यहां आया क्योंकि मुझे पता था कि आप दूसरों से घिरे नहीं होंगे. मेरे इलाके में पानी भर गया था और मुझे यहां पहुंचने के लिए तैरना पड़ा था.. मैं आपका सहायक निर्देशक बनना चाहता हूं. मैं कैसे नहीं बोल सकता हूं? इस तरह हमारी यात्रा शुरू हुई. तीसरे सहायक निर्देशक से लेकर मुख्य सहायक से सहयोगी निर्देशक तक.”


शेखर ने लिखा, “सतीश मेरे परिवार का हिस्सा बन गया. मेरे साथ रहता था. एक भाई की तरह.. मेरी फिल्मों में अभिनय किया.. और फिर जैसे-जैसे वे अपने दम पर निर्देशक बन गए.. सतीश नए क्षितिज तलाशने के लिए दुनिया में चले गए. . प्यार कभी दूर नहीं हुआ.. हमेशा एक साथ वापस आने का इरादा रखता है. मैं अब भी सतीश के गुजर जाने की बात मान रहा हूं.. उनके गुजर जाने की एक अंतिम बात है, मैं इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हूं.. क्योंकि हमारी कहानी अभी अधूरी थी.. अभी अधूरी है. क्योंकि प्रेम की कहानी समाप्त नहीं होती, यह रूपांतरित होती है, यह सिखाती है, यह खोजती है, यह आपके दिल को तोड़ती है, लेकिन आप हैं. क्योंकि प्यार है..”

बता दें कि शेखर कपूर ने सतीश कौशिक के साथ दो फिल्मों – मिस्टर इंडिया और मासूम में काम किया. सतीश कौशिक का दिल्ली में 66 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट के चलते निधन हो गया. गुरुवार को मुंबई में आयोजित अंतिम संस्कार में उनके परिवार, दोस्तों और बॉलीवुड हस्तियों ने भाग लिया.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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